हर शब्द के भाव को समझकर और महसूस करके ही अच्छा गा सकते हैं !

संगीत की दुनिया में अपना परचम लहराने वाले, गायक-संगीतकार अरविंद अग्रवाल से मुलाकात

    23-Mar-2024
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संपर्क जानकारी :- अरविंद अग्रवाल
स्थान : साई अपार्टमेंट 1- फ्लोर, खरालवाड़ी,
पिंपरी, पुणे - 411018 (महाराष्ट्र्‌‍)
ई-मेल आईडी : [email protected]
इंस्टा आईडी : arvindagarwal.live
मोबाइल नंबर : 9822329329
 
  
 
कलाकार चाहे छोटा हो या बड़ा, उसकी और उसकी कला की कद्र आवश्यक है. एक कलाकार अपने आप को निखारने के लिए समय की लागत लगाता है इसलिए उसकी कला को पैसों से नहीं तोलना चाहिए. अगर किसी भी कार्यक्रम से संगीत हटा दिया जाता है, तो कार्यक्रम अधूरा लगेगा. कला दिलों में भावनाओं को जगाती है. हमारे बीच केवल भाव हैं जो हमें एक दूसरे से बांध के रखते हैं. देश और दुनिया में संगीत के क्षेत्र में जाना-पहचाना नाम रखने वाले अपने ही पुणे शहर के होनहार कलाकार, गायक और संगीतकार अरविंद अग्रवाल ने दै.‘आज का आनंद' की संवाददाता रिद्धी शाह से साझा की अपने संघर्ष की कहानी, तो पेश है पाठकों के लिए उनकी कहानी के कुछ विशेष अंश :
 
सवाल : आप कहां से हैं और आपकी पारिवारिक पृष्ठभूमि क्या है?
 
जवाब : मैं पिंपरी में रहता हूं, मेरे पूर्वज हरियाणा के सोनीपत जिले के निवासी थे. मैं एक व्यापारिक परिवार से हूं, मेरे पिताजी का नाम राजकुमार हरिचंद अग्रवाल है, माताजी का नाम सुशीला अग्रवाल, मेरी पत्नी का नाम रेश्मा अग्रवाल, मेरे बेटे का नाम अर्चित और बेटी का नाम रति है. हम सभी पिंपरी में ही रहते हैं. मेरे पिताजी की खरालवाड़ी में राज प्रोविजन स्टोर नामक एक किराना दुकान है. सवाल : आपकी पढ़ाई कहां से हुई है?
 
जवाब : मैं पिंपरी-चिंचवड़ की हिंदुस्तान एंटीबायोटिक्स स्कूल से पढ़ा हूं, मैंने पिंपरी के ही जय हिंद कॉलेज से बीकॉम में ग्रेजुएशन किया है. सवाल : आपका संगीत का सफर कैसे शुरू हुआ ?
 
जवाब : मुझे 11वीं कक्षा से गाने का बेहद शौक था. जब मैंने गाने के प्रति अपनी रूचि के बारे में मेरे पिताजी को बताया तो वे इस बात से नाखुश हुए और मुझसे कहने लगे कि यह अपने बनियों के बच्चों का काम नहीं है. उनकी आंखों में एक अजीब-सी चिंता छा गई थी कि क्या मैं पैसा कमा पाऊंगा भी या नहीं. पर यही चिंता मेरी मजबूती बन गई. मैंने हार नहीं मानी, बल्कि अपने सपनों को पूरा करने का अटल संकल्प बना लिया. मैंने गाना सीखना और सुनना जारी रखा और बाकी भगवान पर छोड़ दिया. मैं जहां भी कोई शादी ब्याह में आर्केस्ट्रा देखता, तो वहां उनको स्टेज पर जाकर कहता की मुझे भी गाना गाने का मौका देें. कोई देता था, कोई नहीं देता था पर मैं निराश नहीं होता था. मैं कॉलेज के इंटर कॉलेज कॉम्पिटिशन में भाग लेता था और गाता था. लोग मेरी सराहना भी करते थे. कॉलेज में मुझे कुछ दोस्त ऐसे मिले जिन्हें भी गाना बहुत पसंद था. हम सब साथ में घंटों ग्राउंड पर, कैंटीन में बैठे रहते और गाने गाते बजाते रहते.
 
सवाल : आपने किस प्रकार का संगीत सीखा?
 
जवाब : 11वीं कक्षा में मेरे मामाजी ने मुझे क्लासिकल संगीत सीखने के लिए भेजा. वे मिसेज भावे मैडम थीं. वे एक प्रसिद्ध और अनुभवी शिक्षिका थीं, जो निगड़ी प्राधिकरण में रहती थीं. उनके पास मैं क्लासिकल संगीत सीखने जाता था. वो मुझे क्लासिकल संगीत में राग, बंदिशें सिखाती थीं. लेकिन मुझे क्लासिकल नहीं फिल्मी गाने गाने का शौक था. इसलिए मैंने अपने मामाजी से कहा की मुझे क्लासिकल नहीं बल्कि फिल्मी गाने गाने हैं. वे हंसे और चुप रह गए. मैंने अपनी क्लासेज 2 साल तक जारी रखी और उन दो सालों में मैंने लगभग 8 में से 7 राग सीखे. थे पर कहीं न कहीं मन वो सीखने का नहीं था. मेरे दिल में वह संतुष्टि का अभाव था जो मुझे फिल्मी संगीत के प्रति आकर्षित करता था.
 
 
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सवाल : फिर आपने फिल्मी गाने गाने के बारे में शिक्षा कैसे ली?
 
जवाब : 1996 में, जब घर में केबल टीवी आया और जी टीवी ने ‘सारेगामा' की शुरुआत की, तो उस दिन से मेरी जिंदगी बदल गई. सोनू निगम के होस्टिंग में इस शो ने जिंदगी को एक नई दिशा दी. मेरी मंझली बहन और मैं हर एपिसोड को बिना चूके देखते थे. मुझे इस शो का फॉर्मेट बेहद पसंद आता था. सभी कंटेस्टेंट्स एक से बढ़कर एक रहते थे. वो लोग जब गाते थे, तो टीवी की स्क्रीन पर नीचे उस गाने की पूरी जानकारी लिखी हुई आती थी. गाना किसने गाया, संगीतकार कौन है, कौन से साल की फिल्म, फिल्म का नाम, सब कुछ सामने आ जाता था, उस जानकारी को मैं अपनी नोटबुक में लिख लेता. जो भी गाना मुझे अच्छा लगता, मैं उनकी कैसेट्स बनाकर उन्हें रोज सुनता था.
चाहे गजल हो, ठुमरी हो या फिर लाइट इंडियन गीत, सभी तरह के गाने मेरे पास थे. अक्सर मैंने संगीत के विशेषज्ञों से सुना है कि संगीत सीखने या गाने के लिए गले से पहले कान सुरीले होने चाहिए, तभी कोई व्यक्ति संगीतकार बन सकता है. जब मैं गानों को ध्यान से सुनने लगा तब मुझे इस बात का महत्व समझ आया. गानों को सुनकर मेरे कान और मेरा गला सुरीला बन गया. गाना अच्छे से सुनना आना चाहिए और उस गाने की छोटी सी छोटी चीजों को समझना आना चाहिए. मुझे यह नहीं पता था, लेकिन मैं वही कर रहा था. वो दिन आज भी मेरे लिए यादगार दिन हैं. उस शो ने मुझे न सिर्फ संगीत को समझने का शौकीन बनाया, बल्कि मेरे संगीत के दृष्टिकोण को भी बदल दिया. आज जब भी मैं वो गाने गाता हूं और मुझे उनका रियाज करने की जशरत नहीं पड़ती, क्योंकि वे मेरे दिल और दिमाग में बस चुके हैं.
 
 
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सवाल : आपकी व्यवसाय पृष्ठभूमि के बारे में बताइए?
 
जवाब : पढ़ाई खत्म होते ही मेरे जीजाजी ने मुझे एक बिजनेस का आइडिया दिया और मैं उनके साथ जुड़ गया. 2001 में औंध में हमने आइडिया मोबाइल कंपनी का शोरूम खोला था और अग्रवाल, मारवाड़ियों के बच्चों को मेहनत करना सिखाना नहीं पड़ता. हमने भी बहुत मेहनत की. समय बीतता गया और हमने न सिर्फ पैसा कमाया, बल्कि नाम भी बनाया. लगभग 20 साल हमने शोरूम को दिए आगे भी देते लेकिन जब कोरोना महामारी ने संसार को अपने आगोश में ले लिया, हमें अपने शोरूम को बंद करने का फैसला करना पड़ा. हमने उस जगह को किराये पर दे दी. उस वक्त मैं घर पर गाने गाकर रील्स बनाकर सोशल मीडिया पर डालता था. शोरूम के बंद होने के बाद, आत्म-प्रतिष्ठा और संवेदनशीलता से अपने आप को नई दिशाओं में रखा.
 
 
सवाल : अब आप किस तरह के प्रोग्राम करते हो?
 
जवाब : देर से मिला लेकिन मुझे मेरा लक्ष्य मिला. जहां मैंने रागों को, क्लासिकल संगीत को छोड़ा था, नियती ने मुझे फिर वहीं लाकर छोड़ दिया. तब समझ आया की संगीत तो रगों में है. इस समझ के साथ, मैंने फिर से संगीत की दुनिया में कदम रखा और दोबारा गाना-गाना शुरू किया. पिछले कुछ वर्षों में, मैंने संगीत की अनगिनत अवधारणाओं को समझा है. मुझे महान कलाकारों का संगीत सुनना, उनके इंटरव्यू सुनना, उनके ऑटोबायोग्राफी पढ़ना बेहद पसंद है. मुझे इन सभी से दोबारा गाना-गाने की प्रेरणा मिली. अब मैं सभी प्रकार के म्यूजिकल प्रोग्राम करता हूं. जैसे- वैदिक फेरे, मायरा भात, माता की चौकी, साई की चौकी, कृष्ण भजन संध्या, शोक सभा भजन, रामजी और हनुमान जी के भजन, रोमांटिक गजल, तीज सावन आदि. मेरे लिए संगीत का सफर लोगों के वेिशास और प्यार का परिणाम है. मेरे पास और भी कई फॉर्मेट तैयार हैं, जिसके लिए अधिक लोगों का भरोसा और प्यार की जरूरत है.
 
 
सवाल : अब तक आप कितने प्रोग्राम कर चुके हो?
 
जवाब : मैं 2017 से शो कर रहा हूं, अब तक मैंने लगभग 500 से अधिक शो किए हैं, जिनमें से 7 राज्यों में भी शो कर चुका हूं. सवाल : अभी तक आपने जो लगभग 500 शो किए हैं, वे कौन से शहरों में ज्यादा हुए हैं? जवाब : मेरे 500 शो में से अधिकांश शो पुणे में ही हुए हैं. बाकी औरंगाबाद, जालना, लातूर, मुंबई, राजस्थान, गुजरात, कर्नाटक, हैदराबाद, दिल्ली, हरियाणा, मध्यप्रदेश में मेरे शो हुए हैं और अभी जुलाई में मैं साउथ अफ्रीका में एक इंटरनेशनल शो करने जा रहा हूं.
 
सवाल : आपको अब भी गाने का रियाज करना पड़ता है?
 
जवाब : जी हां. मैं आज भी गाने का रियाज करना हूं और सिर्फ सीखता ही नहीं उस गाने को महसूस करता हूं. मुझे भजन और गजलों का बहुत शौक है और अगर किसी को भजन सीखने की इच्छा हो तो भारतीय संगीत में एक ही ऐसा व्यक्ति है जो असली भजन सम्राट है और वह है पद्मश्री अनूप जलोटा. मेरे पिछले कुछ सालों का सौभाग्य रहा है कि मुझे मुंबई में उनके घर जाकर भजन और गजल सीखने का अवसर प्राप्त हुआ. वे हमें अपनी बहूमहीन तपस्या के अनुसार प्रशिक्षण देते हैं और हर एक सांगीतिक ध्वनि के साथ हमें भावपूर्ण अभ्यास कराते हैं. भजन और गजल गाना सरल कार्य नहीं है, यह एक सेमी-क्लासिकल रूप का संगीत है. गाते समय, हर एक शब्द के भाव को समझना और महसूस करना आवश्यक होता है. शब्दों को सही रूप में व्यक्त करने की कला, जानने और समझने के बाद ही संभव है.
 
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सवाल : आप खुद भी गाने लिखते और गानों को स्वरबद्ध करते हो क्या?
 
जवाब : जी हां, जैसे कि मैंने पहले कहा कि मैं अपने आप को खाली समय में और बेहतरीन बनाने को कोशिश करता हू्‌ं‍. मैं गानों को सुनना और लिखना भी पसंद करता हूं, जो मेरे अंतरमन को शांति और संतुष्टि प्रदान करते हैं. मैं सभी गायकों, संगीतकारों और शायरों को सुनता रहता हूं. उनकी विविधता मुझे प्रेरित करती है. इसके साथ मैं प्रसिद्ध युगवक्ता डॉ. कुमार वेिशास को भी सुनना बेहद पसंद करता हूं. उनके शब्दों में विचारों की गहराई और प्रेरणा होती है. मैं उनके साथ ही और भी कई कवियों को सुनता और पढ़ता रहता हू्‌ं‍. इसके परिणामस्वरूप मुझे लिखने की समझ आ गई. फिर मैं सुनी हुई पंक्तियों को गाने के मीटर में बिठा देता हूं, और बस इसी तरह से गीत निर्मित हो जाता है.
 
सवाल : आपने अभी तक आपके द्वारा गाए गए एवं निर्मित किए गए गाने, भजन, गजल कहीं रिलीज किए हैं क्या?
 
जवाब : मेरा यह मानना है कि काम को बेहतरीन बनाने के लिए कुछ लागत की जरूरत होती है, जिसकी मुझे आवश्यकता है, क्योंकि ऑडियो और वीडियो दोनों को उत्कृष्ट बनाने के लिए खर्चा बहुत है. इसलिए मैं कुछ प्रोड्यूसर्स ढूंढ रहा हूं, जो मेरी मदद करें. कोई अपना अग्रवाल, मारवाड़ी भाई अगर साथ में जुड़ जाए, तो मेरे भजन यूट्यूब के माध्यम से सारे वेिश में लोग देख और सुन सकेंगे. लगभग 100 से अधिक भजन, गीत बनाकर तैयार हैं. मुझे अब बस प्लेटफॉर्म चाहिए.
 
सवाल : आप अपने चार्जेस कैसे तय करते हो?
 
जवाब : हर एक कलाकार अपने-अपने स्तर के हिसाब से अपना चार्ज तय करता है. हर कलाकार को यह भली भांति पता होता है की उसका खुद का क्या स्तर है और उसे कितने पैसे लेने चाहिए. काफी कम लोगों को कला की समझ और कद्र है. कई लोग सिर्फ चार्जेस देखते हैं, काम या स्तर नहीं. कला में स्तर का मापदंड नहीं है. वो महसूस की जाती है. हमारी लाइन में 2000 से 2 करोड़ तक एक कलाकार चार्ज करते हैं. यह तो ऐसा ही है जितना आपका नाम उतना आपका दाम. किसी की बनाई हुई तस्वीर करोड़ों में बिकती हैं और कोई हजारों में भी नहीं बेच पाता. हम लोगों को उनका बजट पूछते हैं और उस बजट में क्या-क्या कर सकते हैं और क्या नहीं, इसपर हम चार्जेज तय करते है. हमारे चार्ज मुंबई, गुजरात के हमारे स्तर के कलाकारों से बिल्कुल आधे हैं. हमारी प्राथमिकता लोगों को अच्छा संगीत देना हैं और वो भी बिल्कुल किफायती कीमतों में. मेरा यह मानना है सिर्फ अच्छा काम करते रहना चाहिए. आज नहीं तो कल, काम अपने आप आपके पास आता रहेगा.
 
सवाल : आपके परिवार से भी किसी को संगीत में रूचि है क्या?
 
जवाब : हां, मेरा बेटा अर्चित जब 3 साल का था, तब से वह संगीत सिख रहा है. वो अब 16 साल का है और भारत का एक उत्कृष्ट वायलिनिस्ट कहलाता है. अर्चित काफी म्यूजिकल शोज करता है. इसके अलावा वह स्टूडियो में फिल्मी गानों के लिए रिकॉर्डिंग भी करता है. उसने कई राज्यों में अपनी टीम के साथ परफॉर्म करके लोगों को मंत्रमुग्ध किया है. वह कई प्रसिद्ध कलाकारों के साथ भी काम कर चुका है. उसका संगीत का ज्ञान मुझसे भी अच्छा है. वह 10 साल की उम्र से कमा रहा है. इसके अलावा मेरी बेटी रती 5 साल की उम्र से मेरे बेटे के साथ-साथ वायोलिन सीखती थी. अब वो 20 साल की है. पिछले 2 सालों से वो सीए की पढ़ाई में डटी हुई है. इसीलिए अब उसका संगीत का सफर रुका हुआ है. कभी कभार मन की शांति के लिए वह वायलिन निकाल कर बजा लेती है. वहीं मेरी पत्नी रेशमा को मैंने लॉकडाउन में थोड़ा ट्रेन किया. स्क्रिप्ट कैसे पढ़नी है, कैसे बात करनी है. आव भाव कैसे होने चाहिए. अब वो हमारे कुछ कार्यक्रमों में हमारे साथ मंच पर सूत्र संचालन करती है. इस प्रकार, हमारा परिवार संगीत की रुचि और क्षमताओं में समृद्ध है, जो हमें एक साथ जोड़ता है और साथ में खुशियों का अनुभव करने का अवसर देता है.
 
सवाल : आप कौन-कौन सी संस्थाओं से जुड़े हुए हो?
 
जवाब : महान म्यूजिक डायरेक्टर स्वर्गीय मदन मोहन का एक वाक्य जो हमेशा मेरे जेहन में रहता है वह है कि एक फनकार अगर जज्बाती ना हो, तो वो सच्चा फनकार नहीं है. मैं शुरू से ही बहुत ही जअबाती रहा हू्‌ं‍. हम कलाकार दिल से सोचते हैं. ज्यादा दिमाग नहीं दौड़ाते. तो मेरा दिल भी समाज कल्याण के लिए हमेशा धड़कता रहता है. मुझे गर्व है कि मैं कई प्रतिष्ठित संस्थाओं से जुड़ा हुआ हूं, जो मेरे मानवीय मिशनों को साकार करने में मदद करते हैं. सर्वप्रथम मैं पुणे की ‘रिबर्थ फाउंडेशन' का सदस्य हूं, जो वेिशभर में अंगदान जागरूकता को बढ़ाने में लगी है. हम सरकारी कार्यालयों, स्कूल, कॉलेज, और समाज में अंगदान का प्रचार-प्रसार करते हैं. व्यक्तिगत रूप से, मैंने पूरे शरीर का अंग दान किया है. मेरे बड़े मामाजी ने भी बॉडी डोनेट की हुई है. इसके साथ अग्रवाल भाईयो की बनाई हुई एक संस्था है ‘माया चेरिटेबल ट्रस्ट' जो जरूरतमंद मरीजों को उपचार में सहायता प्रदान करते हैं. मैं इस संस्था में थोड़ा डोनेशन देने का प्रयास करता हूं. इसके अलावा, मैं ‘लाइफ स्कूल फाउंडेशन' का एक वालंटियर भी हूं. जहां मैं 9 और 10 वीं कक्षा के छात्रों को पढ़ाता हूं और उनके साथ जीवन के अनुभवों को साझा करता हूं और उनको आने वाले कल के लिए तैयार करता हूं.
 
सवाल : एक संगीतकार को किस प्रकार की परेशानियों का अधिकतर सामना करना पड़ता है?
 
जवाब : सर्वप्रथम 2 तरह के संगीतकार होते हैं, पहला जो अपनी रूचि के लिए संगीत को अपनाता है और दूसरा जो संगीत को ही अपना व्यवसाय बनाना चाहता है. तो जो संगीतकार संगीत को ही अपना व्यवसाय बनाना चाहता है, उसके सामने यह चुनौती रहती है कि उसे पता नहीं होता कि वह एक महीने में या एक साल में कितना पैसा कमाएगा. उदाहरण के तौर पर जैसे कोई डॉक्टर नया होता है तो शुरुआत में उसके पास 2 से 3 पेशेंट ही आते हैं, लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता है वैसे-वैसे उसका नाम बढ़ता है, फिर उसका दाम भी बढ़ता है, इसी उदाहरण की तरह हमारा व्यवसाय भी धीरे-धीरे गति पकड़ता है. जैसे मैं शुरूआती दौर में महीने में सिर्फ 4 से 5 कार्यक्रम करता था, वर्तमान में मैं लगभग 10 से 12 कार्यक्रम हर महीने करता हूं. हमारे व्यवसाय में कब पैसा आएगा, कितना पैसा आएगा यह तय नहीं होता है. जैसे मैं अपनी बात करूं तो मैं एक बिजनेस फैमिली से हूं मेरा परिवार मेरे इस व्यवसाय को अपनाने केों कतई राजी नहीं था. इसके साथ कहीं न कहीं इस व्यवसाय में एक संगीतकार को प्रतिष्ठा भी एक शिखर पर जाकर ही मिलती हैं. किसी भी संगीतकार को शुरूआती दौर में लोगों का भरोसा जीतने में भी समय लगता है. लेकिन मैं धन्यवाद देना चाहूंगा, अपने समस्त अग्रवाल भाइयों का जिन्होंने मुझ पर शुरूआती दौर से भरोसा जताया और मेरा हमेशा समर्थन किया.
 
 
सवाल : अक्सर यह कहा जाता है कि कलाकार आर्थिक दृष्टि से बहुत मुश्किल से स्टेबल होता है? आपका इस बाबत क्या अनुभव रहा है?
 
जवाब : कुछ कलाकार ऐसे होते हैं जो छोटे दायरे में ही संतुष्ट होते हैं, वहीं कुछ अपनी पहचान बनाने के लिए दिनरात मेहनत करने में डटे रहते हैं. हमारा हमेशा बेहतर बनने का प्रयास रहता है और हम लगातार अपनी प्रेजेंटेशन, अपनी स्क्रिप्ट, अपने गानों की गुणवत्ता बढ़ा रहे हैं और जैसे-जैसे हम अपनी कला में सुधार कर रहे हैं हमारी आर्थिक स्थिति और भी सशक्त होती जा रही है.
 
 
सवाल : कोई भी शो करने के लिए आपके साथ कितने लोगों का स्टाफ होता है? क्या आपको उनके साथ शो से पहले रिहर्सल करनी पड़ती है?
 
जवाब : हमारा स्टाफ शो के स्तर पर निर्भर होता है, जितना बड़ा शो उतना ज्यादा स्टाफ. मुख्य रूप से मेरे पास 5 लोगों का स्टाफ है, जिसमें 1 कीबॉर्ड बजाता है, जिसमें एक तबला बजाता है, एक बांसुरी बजाता है, वहीं एक ड्रम बजाता है और एक गायक है. हम हर शो करने से पहले रिहर्सल करते हैं. इसके साथ हम हमारे ग्राहक से पहले ही पूछते हैं कि वह किस तरह के प्रोग्राम की हम से उम्मीद कर रहा है, हम ग्राहक की उम्मीदों के आधार पर अपना शो करते हैं, हमारा ग्राहक हमारे शो से खुश रहे यही हमारी प्राथमिकता है.
 
सवाल : भविष्य में आपकी क्या योजनाएं हैं?
 
जवाब : आने वाले समय में मुझे पूरे देश में अपने व्यवसाय को लेकर जाना है.
 
सवाल : आप नई युवा पीढ़ी और पाठकों को क्या संदेश देंगे?
 
जवाब : आज के युवाओं को मैं यहीं कहना चाहूंगा कि किसी भी चीज में जल्दबाजी न बरतें, धैर्य से काम लें. रील लाइफ नहीं रियल लाइफ पर ध्यान दें. मोबाइल फोन को एक तरफ रखकर अपने रिश्तों को समझें और उन्हें समय दें. मैं सभी से कहना चाहूंगा कि कलाकार चाहे छोटा हो या बड़ा, उसकी और उसकी कला की कद्र करें, उसे सराहें. एक कलाकार अपने आप को निखारने के लिए समय की लागत लगाता है इसलिए उसकी कला को पैसों से न तोलें. अगर किसी भी कार्यक्रम से संगीत हटा दिया जाता है, तो आपका कार्यक्रम अधूरा लगेगा. संगीत दिलों में भावनाओं को जगाता है. हमारे बीच केवल भाव हैं जो हमें एक दूसरे से बांधे रखते हैं. आपस में प्रेम भाव से रहिए. एक दूसरे की जितनी हो सके मदद कीजिए. रिश्तों को पैसों से नहीं दिल से मजबूत कीजिए.