एस.के. सिंह/स्कंद विवेक धर, नई दिल्ली। आज से ठीक एक माह पहले इसरो ने चंद्रयान-3 की सफल लांचिंग की थी। उस मिशन में एलएंडटी, हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स, बीएचईएल और गोदरेज एरोस्पेस जैसी बड़ी कंपनियों के साथ अनंत टेक्नोलॉजीज, सेंट्रम इलेक्ट्रॉनिक्स, एमटीएआर टेक्नोलॉजीज जैसी छोटी कंपनियों और स्टार्टअप ने भी अहम भूमिका निभाई। इनके अलावा स्काइरूट एरोस्पेस, ध्रुव स्पेस, अग्निकुल कॉसमॉस, पिक्सल जैसे स्टार्टअप स्वतंत्र रूप से अंतरिक्ष के क्षेत्र में आगे बढ़ रहे हैं। अंतरिक्ष तो बस एक उदाहरण है। फिनटेक, हेल्थकेयर, स्मार्ट सिटी, शिक्षा, इलेक्ट्रिक वाहन- आप चाहे जिस सेक्टर का नाम लें, इकोनॉमी के हर क्षेत्र में स्टार्टअप महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। दरअसल, भारत का स्टार्टअप इकोसिस्टम अमेरिका और चीन के बाद दुनिया में तीसरा सबसे बड़ा है। स्टार्टअप इंडिया वेबसाइट पर दी गई जानकारी के अनुसार देश में इस समय 2,84,573 स्टार्टअप हैं, जिनमें से 99,380 डीपीआईआईटी से मान्यता प्राप्त हैं।

एनबीएफसी स्ट्राइड वन की दिसंबर 2022 की रिपोर्ट के अनुसार 3 से 5 वर्षों के दौरान स्टार्टअप भारत की जीडीपी में 4% से 5% का योगदान करेंगे। रिपोर्ट में कहा गया है कि 2022 से 2027 के दौरान स्टार्टअप में नौकरियों का सृजन हर साल 24% बढ़ेगा। 2021 में स्टार्टअप्स में 1.92 लाख नौकरियां सृजित हुईं और 2022 में यह संख्या 2.3 लाख हो गई। स्टार्टअप पुरानी कंपनियों की किस तरह मदद कर रहे हैं, इसका भी जिक्र इस रिपोर्ट में है। इसके मुताबिक, भारत की जीडीपी में 2.53% योगदान करने वाली टेक्सटाइल इंडस्ट्री में से 28% एमएसएमई ऐसी हैं जो बिजनेस के अवसरों के लिए स्टार्टअप प्लेटफॉर्म पर निर्भर करती हैं। इन प्लेटफॉर्म से जुड़ने के बाद उनके राजस्व में औसतन 29% की वृद्धि हुई है।

अनेक बहुराष्ट्रीय कंपनियां अपने छोटे-छोटे काम आउटसोर्स करती हैं ताकि वे सिर्फ मुख्य काम पर फोकस कर सकें। इस ट्रेंड को देखते हुए वेंचर कैपिटलिस्ट के साथ-साथ स्थापित कंपनियां भी स्टार्टअप में निवेश कर रही हैं। आईबीएम ने एक सर्वे रिपोर्ट में कहा है कि स्टार्टअप क्षेत्रीय अर्थव्यवस्थाओं को फलने-फूलने में मदद करने के साथ नए बाजार पैदा कर रहे हैं। विभिन्न इंडस्ट्री में स्टार्टअप कंपनियां स्थापित कंपनियों को चुनौती दे रही हैं।

2008 में स्टार्टअप क्रांति, अब तैयार हो रहा ईकोसिस्टम

ईपीआरए इंटरनेशनल जर्नल आफ मल्टीडिसीप्लिनरी रिसर्च में प्रकाशित एक लेख के अनुसार भारत में 2008 में स्टार्टअप क्रांति शुरू हुई। उस समय वैश्विक मंदी के कारण बड़ी-बड़ी कंपनियों को अपने संसाधन रिएलोकेट करने तथा बड़ी संख्या में कर्मचारियों की छंटनी करने पर मजबूर होना पड़ा। स्टार्टअप्स को बढ़ावा देने के लिए सरकार की तरफ से भी कई पहल की गई हैं। स्टार्टअप इंडिया एक्शन प्लान, फंड आफ फंड्स फॉर स्टार्टअपस, स्टार्टअप इंडिया सीड फंड, स्टार्टअप इंडिया शोकेस, ऐसी पहल रही हैं जिनसे स्टार्टअप जगत को काफी फायदा मिला है।

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स्टार्टअप में रिसर्च और डेवलपमेंट का काम भी अपेक्षाकृत कम खर्च में होता है। वेहंत टेक्नोलॉजीज के सह-संस्थापक और सीईओ कपिल बरदेजा कहते हैं, “हम अनुसंधान एवं विकास जैसी इनोवेशन की चुनौतियों और टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में आगे बढ़ रहे हैं। इसके साथ एक मजबूत स्टार्टअप इकोसिस्टम तैयार हो रहा है। देश में विकसित टेक्नोलॉजी टैलेंट, रिसर्च आधारित इंडस्ट्री को बढ़ावा और अत्याधुनिक टेक्नोलॉजी तक सब की पहुंच सुनिश्चित करके भारत ने विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्धा करने और सतत विकास को बढ़ावा देने के क्षेत्र में मील का पत्थर स्थापित किया है। अत्याधुनिक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस सॉल्यूशन अर्बन इंटेलिजेंस को उल्लेखनीय रूप से बढ़ा रहे हैं।”

फिनटेक ला रहे नए तरह के बिजनेस

फाइनेंशियल टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में स्टार्टअप्स यूजर्स का अनुभव बेहतर करने के साथ वित्तीय समावेशन में भी उल्लेखनीय योगदान कर रहे हैं। स्पाइस मनी के सह-संस्थापक और सीईओ संजीव कुमार के अनुसार, “भारत में फाइनेंशियल टेक्नोलॉजी (फिनटेक) स्टार्टअप इकोसिस्टम में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। जैसा कि कॉरपोरेट मामलों के राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) राव इंद्रजीत सिंह ने बताया, अप्रैल 2023 में देश में 3000 से अधिक फिनटेक स्टार्टअप हो गए थे। पेमेंट, कर्ज देने, बीमा और वेल्थ मैनेजमेंट जैसे क्षेत्रों में नए तरह के सॉल्यूशन लेकर आने वाले ये स्टार्टअप फाइनेंशियल इनक्लूजन यानी वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देने के साथ पारंपरिक बैंकिंग मॉडल में भी बदलाव ला रहे हैं।”

संजीव कहते हैं, ज्यादा से ज्यादा लोगों के बीच फिनटेक की पहुंच बढ़ाने के लिए बैंक, एनबीएफसी, सरकार और रेगुलेटर समेत ईकोसिस्टम में शामिल सभी पक्षों को मिलकर प्रयास करने की जरूरत है। बैंकों और फिनटेक को मिलकर काम करने की जरूरत है ताकि भारत तेजी से आगे बढ़ सके। एइपीएस सर्विस फिनेटक और बैंकों के बीच सहयोग का एक बेहतरीन उदाहरण है। इसमें दोनों पक्ष अपने संसाधनों और विशेषज्ञता का इस्तेमाल डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर डीबीटी स्कीम तक ग्रामीण नागरिकों की पहुंच आसान बनाने में करते हैं। मई में एइपीएस के तहत 28,037 करोड़ रुपए के 9.96 करोड़ ट्रांजैक्शन हुए। इससे इस सेवा के महत्व का पता चलता है।

क्रेडिटबी के सह-संस्थापक और सीईओ मधुसूदन एकम्बरम के अनुसार, “फिनटेक स्टार्टअप ब्लॉकचेन, एआई और डाटा एनालिटिक्स जैसी अत्याधुनिक टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल स्थापित बैंकिंग संस्थानों और उनके तौर-तरीकों को चुनौती देने के लिए कर रहे हैं। इससे फाइनेंशियल इनक्लूजन बढ़ाने, लेनदेन और बेहतर कंज्यूमर एक्सपीरियंस में मदद मिली है।”

फिनटेक स्टार्टअप नए तरह के बिजनेस लेकर भी आ रहे हैं। स्टार्टअप्स को एस्क्रो एकाउंट की सुविधा देने वाले ट्रांसबैंक (Transbnk) के सह-संस्थापक और सीईओ वैभव तांबे बताते हैं, “सुरक्षा और भरोसा सुनिश्चित करने के लिए स्टार्टअप एस्क्रो अकाउंट अपनाने लगे हैं। यह एक तरह की इंटरमीडियरी है जो बड़ी राशि के ट्रांजैक्शन करती हैं। इससे लेनदेन में शामिल सभी पक्षों का भरोसा बढ़ता है। इससे भुगतान न करने, डिलीवरी न होने जैसी समस्याएं कम हो जाती हैं। एस्क्रो अकाउंट तब तक फंड को अपने पास रखते हैं जब तक पहले से निर्धारित शर्तें पूरी हो जाती हैं।”

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रोजगार के नए अवसर पैदा कर रहे हैं स्टार्टअप

स्टार्टअप भारत के व्यापक बिजनेस वातावरण का हिस्सा बन गए हैं जो प्रभावी सॉल्यूशन तैयार करने पर फोकस करते हैं। ये सामाजिक-आर्थिक विकास और बदलाव का साधन बनते जा रहे हैं। आज जो नए इनोवेशन हो रहे हैं उनके केंद्र में ये स्टार्टअप ही हैं। ये रोजगार के नए अवसर पैदा कर रहे हैं जिससे इकोनॉमी स्वस्थ और मजबूत हो रही है। भारत में रजिस्टर्ड स्टार्टअप 650 से अधिक जिलों में मौजूद हैं। जब किसी एक जगह पर अनेक स्टार्टअप पर खड़े होते हैं तो उसे जगह का बाजार तेजी से बढ़ने लगता है। लोग आसपास ही रहना चाहते हैं, इसलिए नए घर तथा अन्य इन्फ्रास्ट्रक्चर भी डेवलप होते हैं।

मल्टीमोडल पब्लिक ट्रांजिट ऐप ट्यूमक के सह-संस्थापक और सीईओ हिरण्मय मल्लिक के अनुसार, “मोबिलिटी के क्षेत्र में स्टार्टअप क्रांतिकारी बदलाव ला रहे हैं। ये न सिर्फ इनोवेशन कर रहे हैं बल्कि शहरों में आवागमन को नई परिभाषा तथा पर्यावरण के अनुकूल विकल्पों को बढ़ावा दे रहे हैं।” इलेक्ट्रिक वाहनों का इन्फ्रास्ट्रक्चर बढ़ने से सस्टेनेबल परिवहन को बढ़ावा मिल रहा है। मोबिलिटी-ऐज-ए-सर्विस प्लेटफॉर्म बाधा रहित यात्रा, डिजिटल टिकट, यात्रा की प्लानिंग, फर्स्ट और लास्ट माइल कनेक्टिविटी को इंटीग्रेटेड करेगा। इस तरह शहरी आवागमन में बड़ा बदलाव देखने को मिलेगा।

कृषि क्षेत्र में तो स्टार्टअप लगातार नए इनोवेशन लेकर आ रहे हैं। आर्य.एजी के सह-संस्थापक और सीईओ प्रसन्ना राव बताते हैं, टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में हालिया प्रगति के कारण एग्रीटेक के लिए यह संभव हुआ है कि वह संपूर्ण कृषि मूल्य-श्रृंखला में सुधार की प्रक्रिया में महत्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं। उन्होंने ग्रामीण कृषक समुदायों को अपने पिछड़ेपन से बाहर निकलने और वह हासिल करने का एक साधन प्रदान किया है जिसके वे वास्तव में हकदार हैं। लगभग 85 प्रतिशत भारतीय किसान छोटी जोत वाले हैं, जो अक्सर संसाधनों की कमी के कारण अपनी उपज कम दरों पर बेचते हैं। डेटा-संचालित फार्म प्रबंधन, नीयर-फार्म स्टोरेज सॉल्यूशंस, एकीकृत वित्त और कुशल आपूर्ति-मांग के बारे में जानकारी हासिल करने जैसी सुविधाओं के माध्यम से वे व्यापक बाजारों तक लगातार पहुंच सकते हैं, अपनी आय बढ़ा सकते हैं और इस तरह अपने जीवन में सुधार कर सकते हैं।

आर्य.एजी ने छोटे धारकों और उनके संगठनों पर विशेष ध्यान देने के साथ जमीनी स्तर पर बदलाव लाने पर ध्यान दिया है। 3000 से अधिक कम्युनिटी वैल्यूचेन रिसोर्स पर्सन्स, जिनमें ज्यादातर महिलाएं हैं, के नेटवर्क के माध्यम से, हमारा लक्ष्य किसान-एफपीओ-बाजार नेटवर्क की स्थापना और विस्तार करने के लिए टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करना है। यह एक ऐसा नेटवर्क है, जो संसाधनों को प्रभावी ढंग से सुव्यवस्थित करता है, जरूरी सूचनाएं एकत्र करता है और पहुंच में सुधार करता है।

एम्पलॉयबिलिटी बढ़ाने में मददगार

एजुटेक भी ऐसा सेगमेंट है जिसमें स्टार्टअप तेजी से उभर रहे हैं। एमबीएट्रेक के सह-संस्थापक और सीई अभिषेक श्रीवास्तव के अनुसार उच्च शिक्षा में एजुटेक इंडस्ट्री तेजी से परिपक्व हो रही है। इसने एम्पलॉयबिलिटी बढ़ाने तथा औपचारिक शिक्षण व्यवस्था से इतर अन्य स्किल बढ़ाने के मामले में अपने आप को एक वैकल्पिक प्लेटफॉर्म के तौर पर स्थापित किया है।

सरकारी आंकड़ों के अनुसार उच्च शिक्षा में अभी ग्रॉस एनरोलमेंट रेशियो 26% है। यह उच्च शिक्षा में कमी को उजागर करता है। उच्च शिक्षा सरकारी और निजी संस्थानों में काफी महंगी हो गई है। एजुटेक इंडस्ट्री भविष्य में उच्च शिक्षा को लोकतांत्रिक बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी। इस इंडस्ट्री की एक और भूमिका अपस्किलिंग और रिस्किलिंग मैं है। यह कॉरपोरेट जगत में हर स्तर के कर्मचारियों के लिए है जो जेनरेटिव एआई, साइबर सिक्योरिटी, इंडस्ट्री 4.0 जैसी अत्याधुनिक टेक्नोलॉजी में अपने आप को अपग्रेड करना चाहते हैं।

द इंग्लिश एडवांटेज (टीईए) के डायरेक्टर जॉन डिसूजा ने बताया, शिक्षा के क्षेत्र में स्टार्टअप के आने के बाद अंग्रेजी भाषा का प्रशिक्षण (इंग्लिश लैंग्वेज ट्रेनिंग- ईएलटी) में भी अच्छी वृद्धि देखने को मिल रही है। छात्रों में अंग्रेजी भाषा को प्रमोट करने में ईएलटी स्टार्टअप महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। ग्लोबल कम्युनिकेशन और एम्पलॉयबिलिटी के लिए अंग्रेजी भाषा की जानकारी होना आवश्यक है। ग्लोबल इकोनॉमी में आने वाले वर्षों में भारत की भागीदारी बढ़ने के साथ ईएलटी का महत्व भी बढ़ेगा।

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इलेक्ट्रिक वाहनों के क्षेत्र में इनोवेशन

इलेक्ट्रिक वाहनों की मांग बढ़ने के साथ इनमें स्टार्टअप इनोवेशन भी लेकर आ रहे हैं। इलेक्ट्रिक वाहन स्टार्टअप रैपटी (Raptee) के सह-संस्थापक और सीईओ दिनेश अर्जुन बताते हैं, वर्ष 2022 में दुनिया भर के इलेक्ट्रिक वाहन स्टार्टअप की कुल वैल्युएशन 100 अरब डॉलर से अधिक थी। बैटरी टेक्नोलॉजी में सुधार, यूजर के अनुभव, कंज्यूमर डिमांड और परफॉर्मेंस जैसे कारकों की वजह से इसमें तेज ग्रोथ दिख रही है। अनुमान है कि वर्ष 2030 तक दुनिया में कुल कार बिक्री में 30% इलेक्ट्रिक कारें होंगी। फंडिंग के लिहाज से भारत का इलेक्ट्रिक वाहन स्टार्टअप ईकोसिस्टम दुनिया में चौथा सबसे बड़ा है। अमेरिका, चीन और स्वीडन इस मामले में शीर्ष स्थान पर हैं। 2022 में भारतीय इलेक्ट्रिक वाहन स्टार्टअप्स ने 1.66 अरब डॉलर का फंड जुटाया जो 2021 की तुलना में 117% ज्यादा है।

अर्जुन का अनुमान है कि आने वाले वर्षों में भारत का इलेक्ट्रिक वाहन बाजार काफी तेजी से बढ़ेगा। इलेक्ट्रिक दोपहिया तिपहिया और यहां तक कि कारों की डिमांड काफी बढ़ेगी- खासकर पर्यावरण जागरूकता बढ़ने, बैटरी की लागत कम होने और सरकार की मदद वाली नीतियों के कारण। भारत सरकार ने 2030 तक कुल नए वाहनों की बिक्री में 30% इलेक्ट्रिक वाहनों की बिक्री का लक्ष्य रखा है। भारत का इलेक्ट्रिक वाहनों का बाजार 2020 में 1.2 अरब डॉलर का था जिसके 2025 में 15 अरब डॉलर का हो जाने की उम्मीद है। इस दौरान ग्लोबल मार्केट 120 अरब डॉलर से 800 अरब डॉलर का हो जाने का अनुमान है।

बैटरी स्वैपिंग स्टार्टअप एस्टीमो की सह-संस्थापक और डायरेक्टर डॉ. प्रभजोत कौर का कहना है कि इलेक्ट्रिक वाहन जैसे नए क्षेत्र बड़ी संख्या में ऐसे युवाओं और अनुभवी प्रोफेशनल्स को आकर्षित कर रहे हैं जो ग्रीन क्लाइमेट टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में कुछ नया और चुनौतीपूर्ण कार्य करना चाहते हैं। विश्व स्तर पर लोगों ने दो दशक पहले इस दिशा में काम शुरू किया था, भारत में आकांक्षी उद्यमियों के कारण हम इस दिशा में तेजी से बढ़ रहे हैं।

मनोरंजन की नई इबारत लिख रहे स्टार्टअप

स्टार्टअप मनोरंजन जगत में भी प्रवेश कर चुके हैं। ऐसे ही एक ओटीटी स्टार्टअप ओमटीवी के संस्थापक और एमडी नितिन जय शुक्ला बताते हैं, ओटीटी प्लेटफॉर्म को चलाना बहुत बड़ी चुनौती है। इसमें तीन तरह के खर्चे मुख्य होते हैं- कंटेंट, मार्केटिंग और टेक्नोलॉजी। ओटीटी क्षेत्र में ज्यादातर स्टार्टअप या तो किसी खास जॉनर में या फिर क्षेत्रीय आधार पर काम करना पसंद करते हैं। ऐसा करने पर हम अपनी लागत को नियंत्रित रख सकते हैं, साथ ही दर्शकों को भी उनकी पसंद का कंटेंट मिलता है, जिसके लिए वे पैसे देना चाहेंगे। ओटीटी बिजनेस में जब तक स्टार्टअप बड़ा नहीं हो जाता, तब तक अगर आप नियंत्रित खर्च की नीति पर चलते हुए काम करते हैं तो यह बिजनेस काफी मुनाफे वाला हो सकता है। विभिन्न रेवेन्यू स्रोतों से आपको मिलने वाला रिटर्न काफी अधिक होता है। SVOD, AVOD, B2B, B2G, सिंडिकेशन, बंडलिंग, ब्रांडिंग, एडवरटाइजिंग, मर्चेंडाइजिंग आदि से आप पैसे कमा सकते हैं।

वे कहते हैं, मेरे विचार से नियंत्रित लागत वाला ओटीटी प्लेटफॉर्म एक अच्छा सफल बिजनेस है। हां, इसके लिए काफी धैर्य की जरूरत है। स्टेज, होई-चोई या मितवा जैसे कई गंभीर खिलाड़ी इसके उदाहरण हैं जिन्होंने अपने दम पर स्टार्टअप खड़ा किया और आज सफलता की इबारत लिख रहे हैं।

ओटीटी सेगमेंट इस समय करीब एक अरब डॉलर की इंडस्ट्री है, 2025 तक इसके 5 अरब डॉलर का हो जाने की उम्मीद है। कंटेंट क्रिएटर के लिए यह बेहतरीन समय है, ओटीटी प्लेटफॉर्म के लिए तो यह और अच्छा है। शुक्ला के अनुसार, हमारे पास 140 करोड़ दर्शक है, जिनमें से 70 करोड़ डिजिटल तरीके से जुड़े हुए हैं। इनमें से 50 करोड़ से अधिक लोग सोशल मीडिया पर हैं। अभी ओटीटी ग्राहकों की संख्या 5 करोड़ भी नहीं है। अर्थात बाकी 45 करोड़ संभावित ग्राहक हैं। अगर किसी के पास सही दृष्टि और रणनीति है तो भारत में ओटीटी का भविष्य काफी उज्जवल हो सकता है। 5जी के आने के बाद डाटा की खपत बढ़ेगी और बाजार का विस्तार भी होगा।

चुनौतियां और समाधानः इन्फ्रास्ट्रक्चर की समस्या

आईबीएम के अनुसार 90% स्टार्टअप पहले 5 वर्षों के दौरान ही बंद हो जाते हैं। इसके सर्वे में 77% वेंचर कैपिटलिस्ट ने कहा कि ज्यादातर भारतीय स्टार्टअप नई टेक्नोलॉजी अथवा यूनीक बिजनेस मॉडल पर आधारित इनोवेशन करने में नाकाम रहते हैं। इसलिए भारत का बड़ा मार्केट साइज होने और स्टार्टअप गतिविधियों में तेजी के बावजूद दुनिया भर में रिकॉग्नाइज्ड यूनिकॉर्न में सिर्फ 4% भारतीय हैं। 70% वेंचर कैपिटलिस्ट का कहना है कि सही स्किल वाले कर्मचारी ना होना स्टार्टअप के नाकाम होने की बड़ी वजह है। कॉरपोरेट जगत लंबे समय से भारतीय युवाओं में एम्पलॉयबिलिटी को लेकर सवाल उठाता रहा है। एक स्टडी के अनुसार 80% इंजीनियरिंग ग्रेजुएट एम्पलॉयबल नहीं पाए गए। 75% वेंचर कैपिटलिस्ट का कहना है कि भारतीय स्टार्टअप जरूरी फंडिंग जुटाने में नाकाम रहते हैं।

अलग-अलग सेक्टर के स्टार्टअप के सामने अलग तरह की चुनौतियां हैं। डॉ. प्रभजोत कौर बताती हैं, “वाहन, बैटरी और कनेक्टर की वैरायटी स्टैंडर्ड नहीं है। किसी भी स्वैप ऑपरेटर के लिए हर तरह के मॉडल के हिसाब से सुविधाएं उपलब्ध कराना मुश्किल होगा। एक और चुनौती बैटरी समेत और बिना बैटरी के वाहन पर सब्सिडी की भी है। अभी इलेक्ट्रिक वाहन को अगर बैटरी के साथ खरीदा जाए तो 5% जीएसटी लगता है, बिना बैटरी के उस पर 18% जीएसटी देना पड़ता है। अलग से बैटरी खरीदने पर भी जीएसटी की दर ऊंची होती है।”

रैपटी के दिनेश अर्जुन के मुताबिक, “चार्जिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर बड़ी समस्या है। इस समय चार्जिंग प्वाइंट बहुत कम जगहों पर हैं। कम कीमत, पर्याप्त रेंज और लंबे समय तक चलने वाली बैटरी का विकास एक बड़ी चुनौती है। पारंपरिक वाहनों की तुलना में इलेक्ट्रिक वाहनों की शुरुआती कीमतें काफी अधिक होती हैं। इसके अलावा, बैटरी, मोटर, इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम जैसे कंपोनेंट के मजबूत सप्लाई चेन की स्थापना एक जटिल काम है।”

इसके समाधान के तौर पर वे कहते हैं, “अर्बन प्लानिंग अथॉरिटी के साथ मिलकर इलेक्ट्रिक वाहन इन्फ्रास्ट्रक्चर को सिटी प्लानिंग में शामिल किया जा सकता है। इसमें पार्किंग जोन में चार्जिंग फैसिलिटी उपलब्ध कराना शामिल है। बैटरी टेक्नोलॉजी में सुधार, एनर्जी डेंसिटी, चार्जिंग स्पीड और बैटरी की लाइफ आदि के क्षेत्र में रिसर्च और डेवलपमेंट में निवेश बढ़ाने की जरूरत है। दरअसल, स्टार्टअप में लगातार इनोवेशन की संस्कृति को बढ़ावा देना होगा। इलेक्ट्रिक वाहन इंडस्ट्री में स्किल्ड लोगों की भी कमी है। इसके लिए शिक्षण संस्थानों के साथ मिलकर प्रशिक्षण कार्यक्रम और वर्कशॉप आयोजित किए जा सकते हैं।”

रेगुलेटरी जटिलताएं भी कम नहीं

फिनटेक की समस्याओं पर स्पाइस मनी के संजीव कुमार कहते हैं, “फिनटेक स्टार्टअप्स को अक्सर रेगुलेटरी जटिलताओं का भी सामना करना पड़ता है। इस चुनौती के समाधान के लिए कंपनियों को अपने शुरुआती दिनों में ही नियामकों के साथ बात करनी चाहिए और रेगुलेटरी जरूरतों पर उनसे गाइडेंस लेना चाहिए।” नए जमाने की फाइनेंशियल टेक्नोलॉजी के विकास और उनके पालन की गति बढ़ाने के लिए सरकार को फिनटेक के प्रोडक्ट के प्रति लोगों में जागरूकता बढ़ानी चाहिए। सरकार को फिनटेक सेक्टर में धोखाधड़ी से निपटने के लिए भी प्रोएक्टिव रणनीति बनानी चाहिए।

फिनटेक कंपनियों को फंडिंग में भी समस्या का सामना करना पड़ रहा है। मार्केट इंटेलिजेंस प्लेटफॉर्म ट्रैक्सन की एक रिपोर्ट के अनुसार 2023 की पहली छमाही में भारतीय फिनटेक सेक्टर में फंडिंग में 67% की कमी आई है। इस दौरान फिनटेक कंपनियों ने 1.4 अरब डॉलर की फंडिंग हासिल कि जबकि एक साल पहले इसी अवधि में उन्हें 4.3 अरब डॉलर की फंडिंग मिली थी। फिनटेक स्टार्टअप को ग्राहकों की जरूरतों के मुताबिक प्रोडक्ट और सर्विसेज तैयार करने की जरूरत है। ग्राहकों की जरूरतों को प्राथमिकता देकर ये स्टार्टअप आगे बढ़ सकते हैं और अपने ग्राहकों की संख्या भी बढ़ा सकते हैं।

क्रेडिटबी के मधुसूदन के अनुसार डाटा प्राइवेसी और साइबर हमलों के कारण फिनटेक इंडस्ट्री को कड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। स्थापित वित्तीय संस्थानों के साथ मिलकर फिनटेक स्टार्टअप नए तरह के समाधान मुहैया करा सकते हैं। वे नए कॉन्सेप्ट को इंडस्ट्री की नॉलेज के साथ जोड़ सकते हैं।

स्वरा फिनकेयर लि. के सह-संस्थापक और सीओओ मुकंद माधव के मुताबिक, बीएफएसआई के असुरक्षित कर्ज को लेकर कुछ दबाव दिखने लगा है, लेकिन इसमें कुछ सकारात्मक ट्रेंड भी नजर आ रहे हैं। बीएफएसआई सेक्टर में स्टार्टअप कंसोलिडेशन की प्रक्रिया से गुजर रहे हैं। स्वस्थ बैलेंस शीट वाले स्टार्टअप के लिए फंडिंग की कमी नहीं है, लेकिन कमजोर फाइनेंशियल वाली कंपनियां संघर्ष कर रही हैं। वे अपना बिजनेस बंद कर रही हैं या बड़ी कंपनियां उन्हें खरीद रही हैं। वे कहते हैं, “लागत पर नियंत्रण, अनुभवी प्रोफेशनल मैनेजमेंट और वैल्यू प्रपोजिशन किसी भी कंपनी को दूसरों से अलग करती है। केंद्र सरकार की कुछ पहल का भी सकारात्मक असर हुआ है। जैसे लगातार 3 वर्षों तक मुनाफे में 100% डिडक्शन की सुविधा।”

हम कह सकते हैं कि महज एक दशक में स्टार्टअप देश की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण जगह बना चुके हैं। ये भविष्य के साथ-साथ वर्तमान भी बन चुके हैं। हाल-फिलहाल, भले ही ये स्टार्टअप परेशानी के दौर से गुजर रहे हों, लेकिन भारत की इकोनॉमी में इनकी जगह तय हो चुकी है।